Sunday, October 24, 2010

"प्रकृति की ऑर लौटो"

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने "वेदों की ओर लौटो" का नारा दिया था किन्तु वर्तमान परिस्थिति में इसमें "प्रकृति की ऑर लौटो" जोड़ देना उचित होगा| मेरे विचार से तो यह केवल अत्यंत आवश्यक अपितु अनिवार्य भी हो गया है| आज जब पूरा विश्व "ग्लोबल वार्मिंग" की समस्या से जूझ रहा है तो हमें प्रकृति से मेल-जोल बढ़ाने एवं उसके साथ चलने की आवश्यकता है| मानव प्रजाति ने अपने सुख एवं सुविधाओं के लिए प्रकृति पर जो अत्याचार किया है, उसके नकारात्मक परिणाम हमें "ग्लोबल वार्मिंग" के रूप में मिल रहे हैं| यदि हम लोग इस पर अभी भी ध्यान नहीं देंगे तो निसंदेह प्रकृति ही हमें इसके दुष्परिणाम भोगने पर विवश करेगी|